Wednesday, May 14, 2014

लिखना..

मैं लिखता हूँ
या लिख देता हूँ
या कि कागज़ पर स्याही से यूँ ही कुछ बना देता हूँ

पता नहीं..

लेकिन ज़रूरी नहीं कि जो कुछ लिखा गया
वो मेरे साथ घटा भी हो
देखता-सुनता हूँ मैं
अपने आस-पास
चीज़ों को,
लोगों को

कभी नहीं भी देखता,
नहीं भी सुनता
केवल सोच भर लेता हूँ

लेकिन हाँ,
इतना पक्का है
कि कागज़ पर उतारने से पहले
महसूस ज़रूर कर लेता हूँ

लिखना,
शायद महसूस किये बिना सम्भव नहीं..
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1757 Hours, Tuesday, May 13, 2014

Tuesday, May 13, 2014

सीमा

कलम लिखती है
सब कुछ
जो उससे लिखवाया जाये
जैसे उसे घुमाया जाये

कभी सच,
तो कभी बस कल्पना
कभी कुछ कम,
कभी कुछ ज़्यादा भी

हाँ,
सुख-दुःख भी..

सुख सुन्दर होते हैं
अज़ीज़ होते हैं
अपने भी हो सकते हैं
किसी और के भी
पढ़े जाते हैं
किसी और के हों तो जल्दी भुला दिए जाते हैं
अपने हों तो ख़ुशी एक और बार महसूस करवा जाते हैं

दुःख..?
वे भी पढ़े जाते हैं
किसी और के हों तो भुला दिए जाते हैं
अपने हों तो भूले हुए भी याद आ जाते हैं
घाव हरा कर देते हैं
छील देते हैं

फिर..?
कलम खुद दुखी होती है
बिना किसी के अतीत को कुरेदे
वह पूर्णता नहीं दिखा पाती

यह सीमा है उसकी
अनचाही,
लेकिन बस,
है..
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1827 Hours, Tuesday, May 13, 2014

Monday, May 12, 2014

पिता का काम...??

कहीं आते-जाते,
उठते-बैठते,
उसे लोग मिलते
बात-चीत होती
परिचय आरम्भ होता-
"मेरे पिता अमुक काम करते हैं..."

वह अक्सर सोचता
कि लोग क्यों अपने बारे में बताने से शुरू नहीं करते ?
क्या सम्बन्ध है पिता के व्यवसाय का परिचय से ?
- वह चाहता था उन लोगों से ये सवाल पूछना
और शायद उसे उत्तर मिल भी जाता..

लेकिन
वह इसके आगे सोचना बन्द कर देता,
यह सोचकर कि क्या पता वह भी ऐसा ही करता
अगर उसके भी पिता होते तो...
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©चेतस

०९:५५ अपराह्न, सोमवार, १२ मई २०१४
कोलकाता, पश्चिम बङ्गाल

Saturday, May 03, 2014

आसमान..

आसमान...
उनमें से किसी के लिए हीरों जड़ी चादर
किसी के लिए चाँद-तारों से सजा औंधा थाल
किसी के लिए हल्की नीली रेशमी ओढनी की मानिन्द
कभी रोशनी की जगह
तो कभी बरसात से भरे बादलों का घर
कभी 'ऊपर वाले' की आरामदेह रिहाइशगाह...

वही आसमान...
मेरे लिए तुम्हें देखने, तुमसे बतिया लेने का ज़रिया
तुम्हें महसूस करने का सबसे आसान तरीका
कभी अकेले न होने का अहसास...
सपनों से बाहर की दुनिया में भी
खुली आँखों से दिखने वाली
खूबसूरती और सच्चाई की असल दुनिया..
और भी न जाने क्या-क्या..
सब तुमसे जुड़ा..

वैसे भी तुमसे ही तो जुड़ा होना था न ...
आसमान इतना बड़ा जो होता है..!!

कुछ न छिपाते हुए भी अनजान है आसमान...
सब कुछ बताती  हुई भी, तुम भी तो हो अनजान...
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1053 Hours, Saturday, May 03, 2014, Kolkata
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