Sunday, April 30, 2017

प्रणय-गीत

शबनमी पात सा, सुरमई रात सा
तेरा आना हुआ अनकही बात सा

संदलों में महकती हुई ख़ुशबुएँ तेरे आने से मुझको भी महका गयीं
जो हवाएँ फ़िज़ाओं में बहती रहें, आ के हौले से मुझको भी सहला गयीं
तेरी पाकीज़गी मुझसे जो आ मिली, मेरा दामन हुआ बस तेरी ज़ात सा

रात है, चाँद है, एक एहसास है, ये गुज़रती हुई हर घड़ी ख़ास है
हमको दुनिया की परवाह क्यों हो भला, मैं तेरे पास हूँ, तू मेरे पास है
चाँदनी घुल चली है समाँ में, अहा! और मौसम हुआ साथ बरसात सा

एक लम्हा चला शाम से भोर तक यों हमारी कहानी सुनाता हुआ
ज्यों छिड़ा हो कहीं राग यौवन का ख़ुद अपनी लय-ताल को गुनगुनाता हुआ
तान भी उठ चली कुछ नज़ाकत लिए, फिर इबादत हुई, सुर लगा नात सा

रात बीती सुबह को सुहागन बनाकर, सजाकर सिंदूरी छटा भाल पर
छाँटकर सब अँधेरे उजाला हुआ आसमानों की सारी तहें पर कर
दुपहरी की तपिश भी सही जा रही, मुझको छूकर गया कुछ करामात सा

रंग जीवन के सारे समझ आ गये उन पलों में घटे जो महज़ कुछ घड़ी
संग तेरा मिला है तो खुल जायेगी दो जहाँ की सभी उलझनों की कड़ी
साथ में उम्र भर हम जियें ज़िन्दगी, प्रेम बढ़ता रहे सूत के कात सा

अप्रैल १६, २०१७

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